रविवार, 6 दिसंबर 2015

व्यंग्य- मौसम का दौर

   
व्यंग्य- मौसम का दौर

इस वर्ष मौसम का अजीब दौर चल रहा है |उनकी समझ के बाहर | वे परेशान है |अभी तक शरद का असर न के बराबर |ऐसा वे महसूस कर रहे हैं |शरद का मौसम और शरद का अता – पता नहीं |दिन गरमी , रात में मामूली ठंडक |वे बोले –‘’का बात है भैया इस बार ठण्ड नहीं पड रही | ऐसे ही मौसम में जीना पडेगा का |’’
‘’ का करना है मौसम से कुछ भी रहे |’’
‘’यार मौसम कोई भी रहे से का मतलब |ठण्ड पड़ना चाहिए |अगर ऐसा नहीं हुआ तो ये मौसम की बेईमानी कहाएगी |हेल्दी सीजन कैसे मानेंगे | परम्परा टूट जाएगी मौसम की |भारतीय संस्कृति में  टूटती पम्पराओ की तरह |’’
वे परेशान हैं हैं ठण्ड न पड़ने से |ऐसा भी नहीं है कि वे कोई ऊनी वस्त्रो के व्यापारी हैं |जो माल स्टॉक होने का भय बना रहे |और अगले सीजन के लिए मनी प्राब्लम कड़ी हो जाए |
  इन दिनों नगर  में आने वाले ऊनी कपड़ों के  फेरी वाले भी लगभग गधे कि सींग की तरह गायब है |एक फेरी वाला जो अक्सर सीजन के हिसाब से माल बेचता है |उससे हमने पूछा-‘’इस बार धंधा बदल दिया क्या ? ऊनी वस्त्र कि बजाय साडी बेच रहे हो |
‘’ मौसम ही ऐसा है साब कि साड़ियाँ ही बिकेगीं |उन-स्वेटर के मौसम में लोग पंखे चालू करके सो रहे हैं |ठंडा – आइसक्रीम का मजा ले रहे हैं |इस शरद कहे जाने वाले मौसम में |’’ उसने कहा |
   वे कहते हैं |अगर शीत ऋतू ने अपना जलवा नहीं दिखाया तो क्या होगा |अगले सीजन में गरमी और भी तेज पड़ेगी |हम तो पसीना बहाते हुए और पोंछते –पोंछते मर जायेंगे |
  वे सुबह घूमने के लिए इस मौसम का बड़ी बेसब्री से इंतज़ार करते हैं |बुढाती जिन्दगीं में सुबह –सुबह घूमने के बहाने चार दोस्त भी मिल जाते हैं |इसी बहाने अपनी जिन्दगीं के चार किस्से भी बाँट लेते हैं |बहु-बेटे के अलावा पास-पड़ोसी के प्रति मन में जगती कुधन भी बाँट लेते हैं |मन हल्का हो जाता हैं सुबह की ताजा हवा और मन की कुधन को उगल देने से |
 इस बार सुबह घूमने वालों ज्यादा रूचि भी दिखाई नहीं दे रही है |
वे पूंछ रहे हैं पडौसियों से –‘’ इस बार पहाड़ों में बर्फ नहीं पड़ी क्या |अमेरिका में तो खूब बर्फीली चादर फैली पड़ी है |लोगों का जीवन दूभर हो गया है | अपने यहाँ तो उत्तरी हवाओं का अभी तक पता नहीं है कि ठण्ड का असर बढे| मौसम विभाग है कि नेताओं की तरह ठण्ड पड़ने के आसार का बस आश्वासन पर आश्वासन दिए जा रहा है |
 अखबार वाले भी खूब लिख रहे हैं मौसम के रुख पर |कई लेखकों ने तो इस गरमाहट के बीच भी सर्दी से बचाव के इतने लेख लिख मारे कि उन्हें पढ़ कर  गरमी में भी ठंडी का एहसास होने लगा है |इन दिनों पत्र-पत्रिकाओं के साहित्यिक पृष्ठों में सर्दी को लेकर  ,कविताएं , व्यंग्य ,कहानी व निबंधों ,संस्मरणों, की बर्फीली चादर जमीं है | मगर वास्तविक जगत में ..... धूल, गरमाहट, तेज धूप | एक लेखक महोदय तो ‘’ शरद तू क्यों नहीं आ रही’’ विषय पर  दो दर्जन प्रेम कवितायेँ लिखकर अपने को सच्चा देशप्रेमी की तरह मौसमी कविता प्रेमी साबित कर दिया |
 इधर स्कूल में मास्साब भी कक्षा में ग्लोबल वार्मिंग व शीत के मौसम में आये बदलाव को लेकर धकापेल लेक्चर दे रहे हैं |टाइम पास प्रवचन की तरह |छात्र भी सत्यनारायण की कथा में मौजूद प्राचीन कहानी को पंडितजी के  मुख से सुनते भक्तों की तरह  ढो रहे हैं |
 दफ्तर के कामचोर कर्मचारियों में अलग खलबली मची है |धूप में बैठकर गप्प मारते हुए काम टालने के सारे बहाने धरे पड़े हैं | अभी ठण्ड का कोई बहाना अपन जुगत नहीं बना पा रहा |बेचारे परेशान हैं |
  बदलते मौसम को लेकर यूँ तो शासकीय ,गैर शासकीय सम्मलेन हो रहे हैं | होते रहेंगे |बहानेबाजियाँ बयानबाजियां चलती रहेंगीं |पर मौसम क्यों नाराज है इसका तो पता तो लगाना पडेगा |वरना ......अभी तो मौसम का भुगत ही रहें हैं |,

         सुनील कुमार ‘’ सजल’’ 

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें