बुधवार, 3 मई 2017

लघुव्यंग्य- मन

लघुव्यंग्य- मन
मुझे माध्यमिक शिक्षा मंडल की ओर से हाई स्कूल की प्रायोगिक विज्ञान परीक्षा संपन्न कराने हेतु बाह्य परीक्षक के रूप में जंगल के बीच बसे हाई स्कूल में जाने का आदेश प्राप्त हुआ था, जहां मात्र दो शिक्षक थे और जिस गाँव में घर भी बामुश्किल भी आठ- दस ही थे |
परीक्षा संपन्न कराने के उपरांत मैंने एक शिक्षक से पूछ ही लिया- ‘’ भाई , आप लोग इस घनघोर जंगल के बीच बने स्कूल में बड़े कष्ट में जीवन गुजारते होंगें ...जहां मात्र ८-१० घर ही हैं और जहां के लोग रोटी की तलाश में दिनभर जंगलों में भटकते रहते हैं| कैसे मन लगता होगा आप लोगों का ऎसी जगह ....? आपकी जगह अगर हम होते तो दूसरे दिन यहाँ से रवाना हो गए होते ....!’’

मेरी बात सुनकर वह मुस्कराते हुए बोले ,’’ जहां आसानी से शराब , शबाब और मुर्गे की उपलब्धता हो जाए तो जंगल के बीच बने इस स्कूल में तो क्या , इससे भी बदतर जगह में भी हमारा मन आसानी से रम जाता है सर !’’

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