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मंगलवार, 30 जनवरी 2018

लघुकथा- फर्क

 लघुकथा-फर्क
एक होटल में पुलिस का छापा पड़ा  ।छापेमारी के दौरान पुलिस ने चार जोड़ों को गिरफ्तार किया । वे सब रईस खानदान से थे ।
छापामार टीम  एक सिपाही -"ये हाल है रईसों की बिगड़ैल औलादों का ।मर्यादा न आबरू की चिंता ...।"
"ये तो इनका फैशन भी है और शौक भी दोस्त ।"दूसरे सिपाही का तर्क ।

"देखो इनके चेहरे पर ज़रा भी सिकन नहीं ..।"
" सिकन तो बड़े साहब के चेहरे पर आ गयी है ।फोन पर फोन आ रहे हैं । कह रहे थे ।गलत जगह हाथ डाल दिए.... यार।"

रविवार, 4 अक्तूबर 2015

व्यंग्य- दीनू के बढ़ते कदम

व्यंग्य- दीनू के बढ़ते कदम


वह शहर के गुरन्दी बाजार में मौजूद था |गुरंदी बाजार वह बाजार है जहां कबाड़ और चोरी के माल को नम्बर वन बनाया जाता है |
 उसे सुतली , कांच के तुकडे, बारूद , पालीथीन व् लोह चूर्ण खरीदता देख मैंने दुकान से दूर बुलाकर पूछा- ‘’ क्या करेगा इनको ? क्या बनाने जा रहा है ?
‘’ बम बनाउंगा | पटकनी बम बनाऊंगा साब |’’ उसने मुकराकर कहा |
‘’ बम क्या करेगा ?’ मेरी जिज्ञासा बढ़ती जा रही थी |
 ‘’ बेचूंगा |’’ वह बोला |
‘’ किसे?’
‘’ अपने शहर के गुंडे-मवालियों को साब | सोलह वर्षीय दीनू ऐसे उत्तर दे रहा था , जैसे किसी बम फैक्ट्री का मालिक हो
‘’ अबे पुलिस को मालूम हुआ तो कहीं का न छोड़ेगी |’’
वह हंसा जैसे मैंने बच्चों वाली बात कही हो |’
‘’ वह भी तो हम से खरीदती है साब |’’
‘’ क्या कहा? पुलिस तुमसे बम खरीदती है | बेवकूफ |’ मैंने कहा |
‘’ फर्जी केस बनाने के लिए खरीदती है |’ वह हंस रहा था |
‘’ शहर की पुलिस इतनी गिरी नहीं है कितुझ जैसे से बम ख़रीदे |’’
‘’ आप मानते क्यों नहीं साब |’ उसने अपनी बातों पर जोर देकर कहा |
‘’ हम कैसे मां लें | मैंने कहा |
‘’ अच्छा चलो हम आपकी एक घटना बताते हैं | पर साब बहुत देर हो गयी | तम्बाकू वाला पान नहीं खाया है खिला दो न साब |’ दीनू [पर मुझे तरस आता है | वह मेरे मोहल्ले का लड़का है | जब तब मेरा काम सुन लेता है | जाने क्यों उस पर मेरा प्रेम उमड़ता है | ‘’ आज कल टू नशा भी करता है |’’
‘’ का करें साब | सीख गए हैं | पान खिला दो न साब | बम के पैसे मिलेंगे तो मैं आपको नाश्ता कराउंगा |’’ मैं उसकी तलब भरी व्याकुल विनती को स्वीकारते हुए उसे पान की दुकान की ओर ले गया | पान खिलाया |
पान खाते ही वह बोला-‘’ हाँ तो साब हम दो घटना बताने वाले थे | ‘’ मेरी हामी पर वह घटना सुनाने लगा |
‘’पिछले माह पुलिस एक आदमी को पकड़कर लायी थी |’’ वह व्यक्ति अपराधी नहीं था | उन्हें कल्लू भाई अपराधी के साथ बैठा मिल गया | कल्लू भाई का उसके इलाके में बड़ा नाम है | अत: कल्लूभाई बम काण्ड केस उस व्यक्ति के सर मढ़ना पुलिस की मजबूरी थी | मेरे पास से पुलिस ने दस बम लिए थे |’’
थाणे में उसे धमकाते हुए कह रहे थे –‘’ बेटा इन बमों के साथ तुझे अपना अपराध तो स्वीकारना पडेगा |’ वह गिडगिड़ा रहा था – ‘’ माई – बाप मुझे छोड़ दो | मैं गरीब हूँ | कल्लूभाई के बुलाने पर उन्हें बीडी देने गया था |’’
‘’ चुप स्साले , कालू का नाम लिया तो....| बोल कि यह बम मेरे पास थे |’’ तीन चार थप्पड़ उसके गाल पर जमाते हुए पुलिस वाला कदका | वह वहीँ सिटपिटा गया | अंतत: उसे थोपा गया जुर्म कुबुलना पडा | एक घटना और है साब , कल्लू की दबंगई की |’’
 मैं चुप रहा मगर वह सुनाते है बोला-‘’ होमगार्ड की बिटिया संग कालू भाई पूरी रात बलात्कार किया था मगर पुलिस ने उसे यह `कहकर गिरफ्तार नहीं किया कि जवानी के जोश में ऐसी गलतियाँ हो जाती हैं |’’
 ‘’ अच्छा  छोड़ फालतू की बातें |  बता यह काम तूने कहाँ से सीखा | मैंने कहा |
‘’ झुग्गी तोले में मेरे दो-चार दोस्त रहते हैं न साब | वे मुझे सिखाये हैं | ‘’ उसका इत्मीनान भरा जव्वाब था |
‘’ देख , अब यह काम छोड़ | दूसरा धंधा देख |’’
‘’ का है कि साब छोटा समझकर लोग सही काम की सही मजदूरी देते नहीं | ऐसे कब तक शोषित होएँगे साब | इस धंधे में अच्छी आमदानी हो जाती है | दो जून की रोटी जुटाकर हफ्ते में एकाध बार अंग्रेजी दारू-मुर्गा का स्वाद भी चख लेते हैं | आप लोग जैसा ऐश तो नहीं कर सकते न साब |’’ वह बहुत खुश होते हुए बोला |
 दीनू के सम्बन्ध अपराध की दुनिया से बनाते जा रहे हैं |उसकी पुलिस से भी दोस्ती है तो अपराधियों से भी | वह अभी इतनी समझ नहीं रखता कि उसके धंधे से देश का क्या नुकसान हो सकता है | उसकी जरुरत धन है | धन कमाने हेतु उसके लिए यह आसान रास्ता है | उसके छोटे-मोटे सपने आसान होते जा रहे हैं | इंसान की यही तो कमजोरी होती है कि वह आसान रास्ते से मंजिल पाना चाहता है
         सुनील कुमार ‘सजल’


मंगलवार, 22 सितंबर 2015

लघुकथा – सोच

लघुकथा – सोच

बाबू श्याम लाल अपने बड़े लडके प्रमोद की करतूतों से काफी परेशां रहते |वह हमेशा झगड़े – फसाद , लड़कियों से छेड़छाड़ आदि में ही मशगूल रहता था | खेत्र के तमाम आवारा लड़कों के साथ उसकी संगति थी |
 एक दिन वह किसी गंभीर मामलें में पुलिस द्वारा धर-दबोचा गया \ घर में बैठे शर्मा जी श्याम  बाबू को  को समझा रहे थे | -‘’ ‘’ श्याम भाई , जाओ कुछ ले- देकर प्रमोद को छुडा लाओ \ आखिर बेटा तो आपका ही है \ कल खबर जहाँ – तहां फैलेगी तो उसमें तुम्हारी ही बदनामी होगी न | ‘’
   पर श्याम लाल टस से मस  नहीं हुए | वे प्रमोद की ओर से पूरी तरह बेफिक्र थे | मानो कुछ हुआ ही न हो | शर्माजी के बार-बार उकसाने पर वे खीझते हुए बोले- ‘’ अरे जाने दो यार | ऐसे पुत्र से तो उसका न होना ही बेहतर है | हराम खोर ने मुझे कहीं का का न छोड़ा है |
    अगले दिन पूरे गाँव में यह खबर फ़ैल गयी कि प्रमोद पुलिस हिरासत में मारा गया | शायद रात में पुलिस ने उसे बुरी तरह टार्चर किया था | 
     इधर श्याम लाल जी बेटे की मृत्यु की खबर पाकर खाट पर बेहोश पड़े थे \ उन्हें जब भी होश आता, बस यही दोहराते –‘’ मेरा एक हाथ चला गया \ अब मेरा जीना बेकार है |’’

       सुनील कुमार सजल