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रविवार, 11 फ़रवरी 2018

लघुकथा -संतुष्ट सोच

लघुकथा - संतुष्ट सोच 
नगर के करीब ही सड़क से सटे पेड़ पर एक व्यक्ति की लटकती लाश मिली । देखने वालों की भीड़ लग गयी ।लोगों की जुबान पर तर्कों का सिलसिला शुरू हो गया ।
किसी ने कहा-"लगता है साला प्यार- व्यार  के चक्कर में लटक गया ।"
"मुझे तो गरीब दिखता है ।आर्थिक परेशानी के चलते....।" 
"किसी ने मारकर  लटका दिया ,लगता है ।"
"अरे यार कहाँ की बकवास में लगे हो ।किसान होगा ।कर्ज के बोझ से परेशान होकर लगा लिया फांसी ..।अखबारों में नहीं पढते क्या ...आजकल यही लोग ज्यादातर आत्महत्या कर रहे हैं ।"
भीड़ में खड़े एक शख्स ने एक ही तर्क से सबको संतुष्ट कर दिया ।
-सुनील कुमार "सजल"

रविवार, 4 फ़रवरी 2018

लघु कथा -समर्पण

लघुकथा- समर्पण
वह छः माह बाद अपने गाँव लौटा था । मजदूरी के चक्कर में पूरे परिवार सहित पलायन कर जबलपुर चला गया था ।
 " रमलू कब लौटा ?" किसी ने उससे पूछा ।
" आज ही गुरूजी ।" उसका उत्तर ।
"एक बात पूछ सकता हूँ "। गुरूजी का प्रश्न ।
"क्यों नहीं गुरूजी ।बेशक पूछिए ।"रमलू चहकते हुए बोला ।
"यार तूने परिवार नियोजन अपनाया था । पर कल मैंने देखा तेरी पत्नी फिर भी गर्भ से है ।"
"का करें गुरूजी । बाहर जाने के बाद हम मजदूरों का यही हाल होता है । ज्यादा मजदुरी पाने के चक्कर में ठेकेदार को मेहनत के साथ-साथ  अपनी इज्जत भी समर्पित करना पड़ता है ।"

बुधवार, 20 मई 2015

सूक्ष्म कथाएँ –


सूक्ष्म कथाएँ –
                 १.बच्चे
   ‘’तुम्हारे कितने बच्चे हैं?’’
   ‘’ पूरे छ:’’
   ‘’बाप रे ! इस फैमिली प्लानिंग के युग में भी |’’
   ‘’आपको नहीं मालूम क्या ? शासन की हर प्लानिंग आजकल भ्रष्टाचार की आवोहवा में फ़ैल हो जाती है |’’   

                     2ईच्छा
‘’ अगर तुमने मुझसे विवाह नहीं किया तो मै नदी  में कूद कर जान दे दूँगी |’’
‘’ ठीक है तुम ऐसा ही करो | मेरा भी मरना तय है |’’
  ‘’ पर तुम क्यों ?’’
 ‘’ मुझे वैसे  ही  कैंसर है |’’

            ३ घृणा
‘’ वेश्याओं से इतनी घृणा क्यों ?’’
‘’ क्योंकि वह कई पुरुषों से सम्बन्ध बनाकर अपने पेट की भूख मिटाती है |’’
‘’ मगर पुरुष भी तो कई वेश्याओं से सम्बन्ध बनाते हैं |’’

शनिवार, 16 मई 2015

लघुव्यंग्य – आधुनिक रक्षक


लघुव्यंग्य – आधुनिक रक्षक

मोहल्ले में एक लड़की को किसी बाहरी युवक ने छेड़ दिया | पास लड़कों से रहा न गया | वे उस पर टूट पड़े | जमकर मरम्मत कर डाली उसकी |उन्हीं लड़कों में गुण्डा टाइप दिखने वाला उस पर अपना गुस्सा उतारते हुए बोला –‘’ अबे स्साले तेरी हिम्मत कैसे हुई उससे छेड़छाड़ करने की, तेरे घर में बहिन बेटी भी हैं या नहीं ? तुझे मालूम होना चाहिए कि कोई उस पर नजर उठाकर देखने की  हिम्मत नहीं करता, सिवाय मेरे ....|
                 सुनील कुमार ‘’सजल’’

लघुव्यंग्य –दान – पुण्य


लघुव्यंग्य –दान – पुण्य

मैं उनके साथ सड़क किनारे खडा था |तभी एक कमजोर दृष्टिवाला भिखारी हमारे करीब आया ,भिक्षा माँगने लगा |उन्होंने झट से जेब में हाथ डाला, कहीं न चलने वाला कई जोड़ का दो नोट निकाला | उसके कटोरे में डाला | बोले- ‘’लो बाबा जी , दो का नोट है |’’
  भिखारी खुश होकर उन्हें आशीर्वाद देते हुए आगे बढ़ गया |
  अब वे मेरी ओर देखते हुए बोले- ‘’ आज उपवास है सोचा ऐसे दिन में तो दान कर दूं |’’ आगे कह रहे थे –‘’ फिर हम बाबू लोग तो रोज ही लोगो की गर्दन मरोड़ते रहते हैं कम से कम उपवास के दिन ही सही दान करके कुछ पुण्य कमा लें | इसी बहाने पाप कटते रहेंगे ...|’’
  मैं उनके चहरे को देखते हुए सोच रहा था,’’ जिसकी आदत ही गर्दन मरोड़ने की पद गई हो वह भला उपवास रहे या यज्ञ करवाए अपनी बदनीयत का पंजा दफ्तर ही क्यों कहीं भी फैलाने से नहीं चूकते जैसा कि आज भिखारी की भावना को भी ....|’’
               सुनील कुमार ‘’सजल’

शुक्रवार, 15 मई 2015

लघुव्यंग्य –अनुकरण


लघुव्यंग्य –अनुकरण
स्कूल की मार्निंग शिफ्ट थी | संस्था का एक मात्र चपरासी रामू आज सुबह से ही अपने हलक में शराब उड़ेल कर लड़खडाता हुआ संस्था में उपस्थित हुआ |प्राचार्य जी ने देखा तो गुस्से में तमतमा उठे | वे उस पर बरसते हुए बोले –‘’ नालायक , कल तो तू राशन खरीदने के लिए मुझसे सौ रुपया मांग रहा था और आज सुबह से दारू के लिए पैसे कहाँ से मांग लाया |
‘’साब ! कल शाम, मेरे घरमें आपने पीते हुए बोतल में जो छोड़ दी थी, उसे पीकर आया हूं |’’ रामू ने लडखडाते स्वर में प्रत्युत्तर दिया |
प्राचार्य जी तुरंत उसे वहीँ छोड़ कर अपने कक्ष की ओर बढ़ गए |
               सुनील कुमार ‘’सजल’

लघुव्यंग्य आदमी का चरित्र


लघुव्यंग्य आदमी का चरित्र

आसमान में उड़ रहे दो गिध्द आपस में बतिया रहे थे |
एक ने कहा-‘ यार ,देख नीचे | ये आवारा छोकरे पीली बिल्डिंग के आसपास मंडरा रहे हैं , जैसे हम लोग मरे जानवर को देखकर मंडराते हैं |लगता है कुछ गड़वड है |’’
‘ अबे तू भी बेवकूफ है |वो बिल्डिंग कन्याओं का स्कूल है | इसलिए छोकरे लड़कियों के टाक में यहाँ-वहां घूम रहे हैं |स्साले आदमी का भी कोई चरित्र नहीं है | कभी कुत्ते तोकभी सियार या गिध्द की तरह हो जाते हैं |जंतु कौम का चरित्र लेकर उनसे भी बदत्तर हो गए हैं |हे ईश्वर! रक्षा करना मासूम कन्याओं की |’’
एक लम्बी सांस लेते हुए दूसरे ने कहा |और दोनों लम्बी उड़ान दूर भोजन की तलाश निकल गए |

गुरुवार, 14 मई 2015

लघु व्यंग्य –मौके


लघु व्यंग्य –मौके
पडोसी प्रदेश में बसे राजनैतिक मित्र ने नेताजी को फोन किया |
‘’ सूना है, आपका क्षेत्र सूखाग्रस्त क्षेत्र घोषित हो गया है |’’
‘’ जी ,हां !’’
‘’राहत कार्यक्रम भी आवंटित हुए होंगे
‘’जी,हां!’’
‘’काम के बदले अनाज, राहत धन राशि कुल मिलाकर आप लोग चांदी काट रहे होंगे |’’
‘’ कहाँ यार ...सब गुड़गोबर है |’’
 ‘’क्यों?’’
‘’आजकल जिसकी सत्ता ,लाठी भी उसी के हाथ में होती है और दुधारू भैंस हकालने काम भी वही संभालता है , बाकी सब तो भैंस के बदन पर चर्बी से आयी चमक को ताकते हैं |’’
‘’ लेकिन हमारे यहाँ ऐसा  नहीं है सभी को बराबरी से मुंह मारने के मौके मिल रहे हैं |’’
‘’दरअसल आपके यहाँ जागरूक जनता के रहते के रहते सत्ता में एक ही पार्टी का वर्चस्व नहीं है जबकि हमारे यहाँ की जनता भेड चाल चलती है | जिस तरफ से बनावटी घास की मोहक सुगंध आयी उसी तरफ एक के पीछे एक चलने लगाती है | भले ही आगे साजिश की गहरी खाइयां हों ,नहीं देखती कभी | ‘’
स्थानीय नेता ने अपने सूखते गले से पीड़ा भरी आवाज में मन की भड़ास उगलते हुए कहा |
सुनील कुमार ‘’सजल’’

मंगलवार, 12 मई 2015

व्यंग्य –आतंकवाद



व्यंग्य –आतंकवाद
देश में बढ़ रहे आतंकवाद को लेकर गांव की ग्राम पंचायत में आतंकवाद के विरुद्ध देश वासियों की भूमिका विषय को लेकर एक सामान्य विचार विमर्श गोष्ठी का आयोजन किया गया था |
गोष्ठी में भाग लेने हेतु सामान्य जनों के अलावा प्रतिष्ठित नागरिक एवं समाज सेवी सेठ राम पुकार जी को भी आमंत्रित किया गया था |
गोष्ठी चल रही थी | सेठ जी अपने विचार प्रकट कर रहे थे | तभी उनकी नजर अपने ही नौकर अखरू पर पड़ी | वह बोलते हुए अंदर ही अंदर उबल  पड़े | पर अपने आप को उन्होंने नियंत्रित कर लिया |
उनका वक्तव्य समाप्त हुआ | वह कक्ष से बाहर आये | नौकर अखरूको पास बुलाया| उसके गाल पर एक जोरदार थप्पड़ जमाते हुए धीरे से चीखा- साले, तुम्हे खेत भेजा था या यहाँ सुनाने के लिए बुलाया था | तुम्हारा बाप करेगा खेत का काम ...साले कर्ज लेने से कभी चूकते नहीं | चुकाने की बारी में मुंह छिपाते हो और ऊपर से कहते हो काम करके चुकता कर देंगे ...चलो फूटो वरना हाथ-पैर तोड़ दूंगा ‘’ गाल पर दूसरा थप्पड़ की झनझनाहट और उनकी गुर्राहट के भय से अखरू आतंकवाद के सामने आम जनों की तरह टूट सा गया था |शायद उसके लिए यह आतंकवाद का साक्षात दर्शन था
 

रविवार, 10 मई 2015

लघुव्यंग्य –वही होगा


लघुव्यंग्य –वही होगा

पति –पत्नी आपस में बात कर रहे थे | इसी बीच पत्नी बोली – ‘’ 
शर्मा जी स्वर्ग सिधार गए | अब बेचारी दीदी व उनके दो बच्चों का क्या हाल होगा |बच्चे अभी ब्याहे नहीं हैं ... कैसे चलेगा घर का गुजर –बसर |
‘’’’ कुछ नहीं ..पेंशन के साथ-साथ अनुकंपा नियुक्ति भी मिलेगी उन्हें.....वे अपना मन उनमें बहला लेंगी |’’ पति ने सपाट उत्तर दिया |
‘’लेकिन बेटी ब्याह जाने से और अकेली महसूस करेंगी ...मन कि बेटे का विवाह भी कर देंगी ..पर वे तो अपने में मस्त रहेंगे |फिर क्या होगा बेचारी का |’’पत्नी ने गंभीर होते हुए कहा |
‘’ नया कुछ नहीं होगा ... वही होगा जो हमारे घर तुम्हें बहू बनाकर लाने के बाद मेरी मां का हाल हो रहा है ....|
पति ने पत्नी की ओर से बढ़ायी जा प्रश्नों की श्रृंखला को तोड़ते हुए कहा |
             सुनील कुमार ‘’सजल ‘’

लघुव्यंग्य –करूं या नहीं



लघुव्यंग्य –करूं या नहीं
गाँवव आसपास सूखा पड़ने से मजदूरों का पलायन जारी था|खेती- बाड़ी व घर के काम निपटाने के लिये मजदूरों  का अभाव बना हुआ था | काफी प्रयास के बाद घर के पिछवाड़े का कचरा साफ़ करवाने के लिए उन्हें एक मजदूर उपलब्ध हो पाया |वह जैसे  –तैसे तैयार हुआ और अगली सुबह से काम पर आने की बात कहकर चला गया |
तीन दिन तक इंतज़ार करने के बाद जब वह चौथे दिन उनके घर में उपस्थित हुआ | वे उसे फटकार लगाते हुए बोले –‘’ आज आये हो .. बहुत इन्तजार करवाया ... बड़े भाव बढ़ गए हैं तुम लोगों के इन दिनों ....|’’
मजदूर ने भी उसी अंदाज में जवाब देते हुए कहा –‘’ साब , जब आप कर्मचारी लोग दफ्तर में एक दिन के काम को निपटाने में सप्ताह भर लगाते हैं ...तो मैं मजदूर ठहरा ..कम से कम तीन दिन बाद चला आया ... कही काम शुरू करूं या नहीं ....|’’
वे खामोश...काम हरु करने का इशारा करके रह गए |
             सुनील कुमार ‘’सजल ‘’

लघुकथा – कमाई


लघुकथा – कमाई
सोमवती अमावस्या का दिन | सेठ जी हाथ में थैली लिए बस स्टैंड की ओर जा रहे थे |
‘’ अरे सेठ जी कहांजा रहे हैं ...वह भी सुबह –सुबह |’’ मैं उन्हें देखते ही बोला | वे खड़े हो गये|
‘’नर्मदा करने अमरकंटक |’’
‘’ ऐसी कडकडातीसर्दी में क्यों प्राण दे रहें हैं |’’
क्या करें तो ...आज मार्केट भी सूना है ... धंधा – पानी सब ठंडा है ...सोचा आज पुण्य ही कमा आएं ...| फिर अन्य दिनों में धंधे की कमाई से फुर्सत कहां मिलती है ?’’
‘’ यानी सिर्फ कमाई की ही चिंता ... सेठ जी |’’ मैंने हंसते हुए कहा |
‘’ भई अपन ठहरे व्यापारी ... हर क्षेत्र में मुनाफ़ा ही देखते हैं ..फिर वह धर्म हो धंधा ...|’’
             सुनील कुमार ‘’सजल ‘’

शनिवार, 9 मई 2015

लघुकथा – अभी तक



लघुकथा – अभी तक

एक पुलिस कर्मी ने पटाखे की दुकानसे पटाखा पैक कराया और बिना भुगतान किये चल दिया | उसके जाने के बाद विक्रेता बुरीं गालियाँ देते हुए बोला- ‘’ इन हरामखोरों के कारण धंधा भी सहीं ढंग से नहीं कर सकते |’’

साथ ही में खड़े साथी ने उससे कहा- ‘’आपने बिल भुगतान करने को क्यों नहीं कहा ?’’

‘’साला लायसेंस माँगने लगता तो कहाँ से लाकर दिखाता .... जो मैंने अभी तक बनवाया नहीं है |’’

बुधवार, 6 मई 2015

लघुकथा - धंधा

लघुकथा - धंधा
चमन भाई को अपने धंधे में अचानक काफी नुकसान उठाना पड़ा । धंधे में लगी पूँजी मटियामेट हो गयी । थोड़ा बहुत धन  जो पास में बचा था साहूकारों व दुकानदारों  कर्ज पटाने में  चला गया । चमन जी को कुछ नहीं सूझ रहा था कि वे क्या करें ? घर की माली हालत पर तनाव भरे आंसू बहाते उन्हें एक दिन जाने  सूझा कि यहां वहां से थोड़ा बहुत कर्ज लेकर अवैध शराब बनवाकर बेचना शुरू  कर दिया । इस पर प्रतिक्रिया करते हुए उनके एक करीबी मित्र ने उनसे कहा - '' यार चमन भाई आप तो एक इज्जतदार आदमी है । अपनी इज्जत को दांव पर लगाते हुए यह क्या अवैध ठर्रा बेच रहे हैं । कम से कम धंधा तो ऐसा करते जिसमें इज्जत की भले ही एक रोटी मिलती । यह काम तो ... ?
'' क्या कहा ... ? अगर यह इज्जतदार लोगों का धंधा नहीं है तो आप जैसे इज्जतदार लोग रोजाना शाम को कल्लू के घर हलक में गिलास दो गिलास वही अवैध ठर्रा उड़ेलने क्यों जाते हैं ? कहिए ? 
 मोहन जी ... निरुत्तर... ।

मंगलवार, 5 मई 2015

लघुकथा - सजा

लघुकथा - सजा
वह करीब माह भर से भगवान  दरबार पर  जाता रहा और एक ही रोना रोता - ' भगवान मेरे ऊपर यह कैसा अन्याय उड़ेल रहे हो , तुम्ही देखो पहले पत्नी मानसिक विक्षिप्त हुई फिर आग लगा कर आत्महत्या  कर ली ,साल दो साल के दो छोटे बच्चे मां  बगैर होकर रह गए ,अब करूँ भी तो क्या करूं ,मेरा संकटतो हरो भगवान.....। ''
 एक दिन भगवन प्रकट हुए । बोले- ' वत्स ! तूने अपने पैर पर खुद ही कुल्हाड़ी मारी है । '
 ''यह क्या कह   रहें हैं  भगवन....। '
'' जो कह रहा हूँ ठीक कह रहा हूँ.. अगर तू पिछ्ला जीवन निकम्मेपन व कामचोरी से न   जीता तो तेरी पत्नी तेरे संग नमक-रोटी खाकर भी खुश रहती । वह तेरी बढ़ती कारगुजारी को नहीं देख सकी और मानसिक विक्षिप्ता का शिकार हुई... मगर तू न   सुधरा । तेरी अति उसे सहन न हुई तो उसे भूख - प्यास  बिलखते बच्चों  देखना मुमकिन न रहा और फिर ...... तुझे मालूम है, इसलिए तुझे ऐसी सजा मिलनी चाहिए कि प्रायश्चित कर सके.....। '' इतना कहकर भगवान अंतर्ध्यान हो गए । वह देखता रह गया ।

लघुव्यंग्य -मेरा क्या

लघुव्यंग्य -मेरा क्या
''जिसे   तुम प्यार करती थीं , वह तो तुम्हें छोड़कर चला गया और तुम कुछ न कर सकी । '' सखी ने उससे कहा ।
'' मैंने जानबूझकर उसके खिलाफ कुछ भी नहीं किया । '' उसका मासूम उत्तर था ।
''क्यों?'' सखी ने प्रश्न किया ।
'' उसके बीबी-बच्चे थे...... आखिर उन्हें कौन अपनाता ।' कहा ।
'मगर तुम तो.........। ' सखी ने कहा तो उसकी बात काटते हुए वह स्पष्ट शब्दों में बोली -''मेरा क्या............ मैं तो कुंवारी हूँ । मुझे कोई न कोई अपना लेगा ...
                                 सुनील कुमार ''सजल''

सोमवार, 4 मई 2015

लघुव्यंग्य -मुखौटा

लघुव्यंग्य -मुखौटा
'' तुम जिस संत की पूजा करते थे वह तो पुलिस हिरासत में पहुंच गया । वह भी अपनी शिष्या के साथ बलात्कार  आरोप में । ''
''जो हुआ अच्छा हुआ , मैं उसकी शक्ल  नहीं ,उसकी शिक्षा  की पूजा करता हूँ ....जिसने मेरे  जीवन को लायक बना दिया । एक बात और सुनो.... आदमी के चेहरे पर कई मुखौटे   हैं , मगर शिक्षा के नहीं .... ।

रविवार, 5 अप्रैल 2015

लघुकथाएं


लघु कथा –साहस 

क्षेत्र में घटित हुई अपराधिक उपद्रवी घटनाओं के आधार पर सच्चे सबूतों सहित उसका एक लेख क्षेत्रीय प्रसिध्द अखबार में प्रकाशित हुआ |

 अगले दिन से ही उसे फोन पर धमकियां मिलने लगी- ‘’अबे वफादार कुत्ते आइन्दा हमारे खिलाफ अपनी कलम के सहारे भौंकने की जुर्रत नहीं करना ..वरना..इसका मतलब जानता है ...तेरा तीन वर्षीय मासूम बेटा हमारी पिस्तौल के निशाने पर होगा तेरी खूबसूरत पत्नी का कोमल जिस्म हमारी वासना की भूख का..? और तेरा जीवन आवारा कुत्ते से बदतर बना देंगे ...समझा ...|

फोन रखते ही वह अन्दर तक काँप गया |अगले दिन से वह कलम की निर्भीकता का चोला उतार फेंका |

   सुनील कुमार ‘सजल’

लघुकथा –कवितायें अब नहीं

उनकी कवितायें लम्बे अरसे से छोटी-बड़ी पत्र पत्रिकाओं में छपती आ रही थी | उच्च स्तरीय कविताओं के कारण वे अच्छे कवियों के श्रेणी में आ गए थे | लेकिन पिछले एक - दो माह पूर्व पत्नी के देहांत के उपरांत उनकी एक भी नई कविता कविता पढ़ने को नहीं मिली थी |

  एक दिन मैंने उनसे कहा- ‘’भूपेन्द्र जी क्या बात है ?आजकल आपने लिखना ही बंद कर दिया है ..माना कि भाभी जी असामायिक देहांत दुखद स्थिति है... पर उनकी स्मृति  को समर्पित करते हुए कुछ लिखा करें ताकि मन को शान्ति पहुंचेगी और और तबियत भी हल्की महसूस होगी |’’

 वे कुछ देर चुप रहे फिर बोले –‘’ दोस्त एक कड़वा सच कहें दरअसल अब तक जो भी कवितायें प्रकाशित हुई ...उन्हें उसने ही लिखा था | अब वह नहीं हैं.. तो कविताएं भी नहीं रहीं ....|’’

  उनके सच को सुनकर मैं आगे कुछ भी कने के काबिल नहीं रहा था |

  सुनील कुमार ‘’सजल’