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रविवार, 11 फ़रवरी 2018

लघुकथा -संतुष्ट सोच

लघुकथा - संतुष्ट सोच 
नगर के करीब ही सड़क से सटे पेड़ पर एक व्यक्ति की लटकती लाश मिली । देखने वालों की भीड़ लग गयी ।लोगों की जुबान पर तर्कों का सिलसिला शुरू हो गया ।
किसी ने कहा-"लगता है साला प्यार- व्यार  के चक्कर में लटक गया ।"
"मुझे तो गरीब दिखता है ।आर्थिक परेशानी के चलते....।" 
"किसी ने मारकर  लटका दिया ,लगता है ।"
"अरे यार कहाँ की बकवास में लगे हो ।किसान होगा ।कर्ज के बोझ से परेशान होकर लगा लिया फांसी ..।अखबारों में नहीं पढते क्या ...आजकल यही लोग ज्यादातर आत्महत्या कर रहे हैं ।"
भीड़ में खड़े एक शख्स ने एक ही तर्क से सबको संतुष्ट कर दिया ।
-सुनील कुमार "सजल"

बुधवार, 20 मई 2015

दो लघुकथाएं -


दो लघुकथाएं - 
                                      1.     ऊब
       
           ‘’ तुम्हें वेश्यावृति के धंधे से जुड़े कितने साल हो गये?’’
           ‘’ पूरे पांच साल |’’
           ‘’ फिर भी तुम्हें इस घृणित कार्य से ऊब नहीं आयी ?’’
           ‘’ जिससे पेट का जुगाड़ चले, उससे किसी को ऊब आती है भला ?’’




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                           2.     आयोजन

नगर में ‘’शील भंग एवं क़ानून ’’ विषय पर गोष्ठी  का आयोजन किया जा रहा था | आज भूले-भटके नारायण भी वहां पहुँच गए  थे | विचार सुन कर वे पास खड़े सज्जन से  बोले – कित्ते अच्छे हैं इस लोकतांत्रिक धरती के लोग | बहुत सुंदर | वरना हम तो लोकतांत्रिक मीडिया में यहाँ की खबरें पढ़ -सुनकर सोचते थे ,जितने पाप इस लोकतंत्र की धरती पर होते उतने कहीं नहीं |
सज्जन ने उनकी बातों पर कहा- प्रभु ,आप भ्रमित हैं | ये जो विचारक मंच पर मौजूद हैं ,उनमें से कई दबे छिपे अबलाओं के  शीलभंग करने के आरोपों में घिर चुके हैं , कुछ पर न्यायालय में मामला लंबित हैं |’’
‘’ फिर पापियों को मंच में जगह दी गयी ? ‘’
‘’ विचार व्यक्त करने के लिए |’’

          सुनील कुमार ''सजल''

सूक्ष्म कथाएँ –


सूक्ष्म कथाएँ –
                 १.बच्चे
   ‘’तुम्हारे कितने बच्चे हैं?’’
   ‘’ पूरे छ:’’
   ‘’बाप रे ! इस फैमिली प्लानिंग के युग में भी |’’
   ‘’आपको नहीं मालूम क्या ? शासन की हर प्लानिंग आजकल भ्रष्टाचार की आवोहवा में फ़ैल हो जाती है |’’   

                     2ईच्छा
‘’ अगर तुमने मुझसे विवाह नहीं किया तो मै नदी  में कूद कर जान दे दूँगी |’’
‘’ ठीक है तुम ऐसा ही करो | मेरा भी मरना तय है |’’
  ‘’ पर तुम क्यों ?’’
 ‘’ मुझे वैसे  ही  कैंसर है |’’

            ३ घृणा
‘’ वेश्याओं से इतनी घृणा क्यों ?’’
‘’ क्योंकि वह कई पुरुषों से सम्बन्ध बनाकर अपने पेट की भूख मिटाती है |’’
‘’ मगर पुरुष भी तो कई वेश्याओं से सम्बन्ध बनाते हैं |’’

मंगलवार, 19 मई 2015

लघुकथा – फटी कथरी


लघुकथा – फटी कथरी


कल रात गांव में ठाकुर रामदीन के बंधुआ नौकर समारू की इकलौती बिटिया कल्लो को पडोसी कस्बे के कुछ बदमाश खेत से  उठाकर ले गए
रात भर मां –बाप की आंसू बहाती आँखे व बेचैनी  के बीच जब वह सुबह तक नहीं लौटी तो क्या करें कैसा करें ? की मन: स्थिति से जूझता ठाकुर रामदीन के घर में सर क्झुकाए आंसू बहाता समारू चिंता में कुछ सोच भी नहीं पा रहा था |
ठाकुर रामदीन कह रहे थे –‘’ देख समारू ,मैं पहले ही कह रहा था न किकल्लो को मेरे घर में ही काम में लगा दे पर साला माना नहीं और भेजता रहा दूसरों के घर काम में | हो गई लोगों की नीयत खराब | आज वो अगर मेरे घर होती तो यह दुर्दशा न होती उसकी |
बेचारा समारू क्या कहता | उसे तो ठाकुर साब की नीयत में भी खत नजर आ रहा था | अपने यहाँ काम करने वाली न जाने कितनी बेबस व मजबूर लड़कियों की अस्मत लूट चुके थे |
ठाकुर साब के खोजबीन व सहयोग के आश्वासन के बाद समारू घर लौट आया | इधर देखा तो पत्नी का रो-रोकर बुरा हाल था | जैसे तैसे ठाकुर साब के दी आश्वासन को सुनकर ढाढस बंधा था पर अंदर का उफान लेता सैलाब कहाँ खामोश रहता |वह उसे ताने कसते कह रही थी – ‘’ काश ! मेरी माने होते तो अपनी बिटिया लुटेरों के हाथ लुटाने से बाख जाती | अगर नियत ख़राब होने पर ठाकुर जी उसकी अस्मत से खेल भी लेते तो कौन जानता | इज्जत तो बनी रहती हम गरीबों की और बिटिया के हाथों रकम....| उन बदमाशों का क्या है | ओढ़ बिछाकर कल फेंक जाएंगे अपने द्वार पर फटी कथरी की तरह | कोई काम की नहीं रह जाएगी , न ब्याहने की न मुंह दिखाने की |

शनिवार, 16 मई 2015

लघुव्यंग्य – आधुनिक रक्षक


लघुव्यंग्य – आधुनिक रक्षक

मोहल्ले में एक लड़की को किसी बाहरी युवक ने छेड़ दिया | पास लड़कों से रहा न गया | वे उस पर टूट पड़े | जमकर मरम्मत कर डाली उसकी |उन्हीं लड़कों में गुण्डा टाइप दिखने वाला उस पर अपना गुस्सा उतारते हुए बोला –‘’ अबे स्साले तेरी हिम्मत कैसे हुई उससे छेड़छाड़ करने की, तेरे घर में बहिन बेटी भी हैं या नहीं ? तुझे मालूम होना चाहिए कि कोई उस पर नजर उठाकर देखने की  हिम्मत नहीं करता, सिवाय मेरे ....|
                 सुनील कुमार ‘’सजल’’

लघुव्यंग्य –दान – पुण्य


लघुव्यंग्य –दान – पुण्य

मैं उनके साथ सड़क किनारे खडा था |तभी एक कमजोर दृष्टिवाला भिखारी हमारे करीब आया ,भिक्षा माँगने लगा |उन्होंने झट से जेब में हाथ डाला, कहीं न चलने वाला कई जोड़ का दो नोट निकाला | उसके कटोरे में डाला | बोले- ‘’लो बाबा जी , दो का नोट है |’’
  भिखारी खुश होकर उन्हें आशीर्वाद देते हुए आगे बढ़ गया |
  अब वे मेरी ओर देखते हुए बोले- ‘’ आज उपवास है सोचा ऐसे दिन में तो दान कर दूं |’’ आगे कह रहे थे –‘’ फिर हम बाबू लोग तो रोज ही लोगो की गर्दन मरोड़ते रहते हैं कम से कम उपवास के दिन ही सही दान करके कुछ पुण्य कमा लें | इसी बहाने पाप कटते रहेंगे ...|’’
  मैं उनके चहरे को देखते हुए सोच रहा था,’’ जिसकी आदत ही गर्दन मरोड़ने की पद गई हो वह भला उपवास रहे या यज्ञ करवाए अपनी बदनीयत का पंजा दफ्तर ही क्यों कहीं भी फैलाने से नहीं चूकते जैसा कि आज भिखारी की भावना को भी ....|’’
               सुनील कुमार ‘’सजल’

शुक्रवार, 15 मई 2015

लघुव्यंग्य –अनुकरण


लघुव्यंग्य –अनुकरण
स्कूल की मार्निंग शिफ्ट थी | संस्था का एक मात्र चपरासी रामू आज सुबह से ही अपने हलक में शराब उड़ेल कर लड़खडाता हुआ संस्था में उपस्थित हुआ |प्राचार्य जी ने देखा तो गुस्से में तमतमा उठे | वे उस पर बरसते हुए बोले –‘’ नालायक , कल तो तू राशन खरीदने के लिए मुझसे सौ रुपया मांग रहा था और आज सुबह से दारू के लिए पैसे कहाँ से मांग लाया |
‘’साब ! कल शाम, मेरे घरमें आपने पीते हुए बोतल में जो छोड़ दी थी, उसे पीकर आया हूं |’’ रामू ने लडखडाते स्वर में प्रत्युत्तर दिया |
प्राचार्य जी तुरंत उसे वहीँ छोड़ कर अपने कक्ष की ओर बढ़ गए |
               सुनील कुमार ‘’सजल’

लघुव्यंग्य आदमी का चरित्र


लघुव्यंग्य आदमी का चरित्र

आसमान में उड़ रहे दो गिध्द आपस में बतिया रहे थे |
एक ने कहा-‘ यार ,देख नीचे | ये आवारा छोकरे पीली बिल्डिंग के आसपास मंडरा रहे हैं , जैसे हम लोग मरे जानवर को देखकर मंडराते हैं |लगता है कुछ गड़वड है |’’
‘ अबे तू भी बेवकूफ है |वो बिल्डिंग कन्याओं का स्कूल है | इसलिए छोकरे लड़कियों के टाक में यहाँ-वहां घूम रहे हैं |स्साले आदमी का भी कोई चरित्र नहीं है | कभी कुत्ते तोकभी सियार या गिध्द की तरह हो जाते हैं |जंतु कौम का चरित्र लेकर उनसे भी बदत्तर हो गए हैं |हे ईश्वर! रक्षा करना मासूम कन्याओं की |’’
एक लम्बी सांस लेते हुए दूसरे ने कहा |और दोनों लम्बी उड़ान दूर भोजन की तलाश निकल गए |

गुरुवार, 14 मई 2015

लघु व्यंग्य –मौके


लघु व्यंग्य –मौके
पडोसी प्रदेश में बसे राजनैतिक मित्र ने नेताजी को फोन किया |
‘’ सूना है, आपका क्षेत्र सूखाग्रस्त क्षेत्र घोषित हो गया है |’’
‘’ जी ,हां !’’
‘’राहत कार्यक्रम भी आवंटित हुए होंगे
‘’जी,हां!’’
‘’काम के बदले अनाज, राहत धन राशि कुल मिलाकर आप लोग चांदी काट रहे होंगे |’’
‘’ कहाँ यार ...सब गुड़गोबर है |’’
 ‘’क्यों?’’
‘’आजकल जिसकी सत्ता ,लाठी भी उसी के हाथ में होती है और दुधारू भैंस हकालने काम भी वही संभालता है , बाकी सब तो भैंस के बदन पर चर्बी से आयी चमक को ताकते हैं |’’
‘’ लेकिन हमारे यहाँ ऐसा  नहीं है सभी को बराबरी से मुंह मारने के मौके मिल रहे हैं |’’
‘’दरअसल आपके यहाँ जागरूक जनता के रहते के रहते सत्ता में एक ही पार्टी का वर्चस्व नहीं है जबकि हमारे यहाँ की जनता भेड चाल चलती है | जिस तरफ से बनावटी घास की मोहक सुगंध आयी उसी तरफ एक के पीछे एक चलने लगाती है | भले ही आगे साजिश की गहरी खाइयां हों ,नहीं देखती कभी | ‘’
स्थानीय नेता ने अपने सूखते गले से पीड़ा भरी आवाज में मन की भड़ास उगलते हुए कहा |
सुनील कुमार ‘’सजल’’

मंगलवार, 12 मई 2015

व्यंग्य –आतंकवाद



व्यंग्य –आतंकवाद
देश में बढ़ रहे आतंकवाद को लेकर गांव की ग्राम पंचायत में आतंकवाद के विरुद्ध देश वासियों की भूमिका विषय को लेकर एक सामान्य विचार विमर्श गोष्ठी का आयोजन किया गया था |
गोष्ठी में भाग लेने हेतु सामान्य जनों के अलावा प्रतिष्ठित नागरिक एवं समाज सेवी सेठ राम पुकार जी को भी आमंत्रित किया गया था |
गोष्ठी चल रही थी | सेठ जी अपने विचार प्रकट कर रहे थे | तभी उनकी नजर अपने ही नौकर अखरू पर पड़ी | वह बोलते हुए अंदर ही अंदर उबल  पड़े | पर अपने आप को उन्होंने नियंत्रित कर लिया |
उनका वक्तव्य समाप्त हुआ | वह कक्ष से बाहर आये | नौकर अखरूको पास बुलाया| उसके गाल पर एक जोरदार थप्पड़ जमाते हुए धीरे से चीखा- साले, तुम्हे खेत भेजा था या यहाँ सुनाने के लिए बुलाया था | तुम्हारा बाप करेगा खेत का काम ...साले कर्ज लेने से कभी चूकते नहीं | चुकाने की बारी में मुंह छिपाते हो और ऊपर से कहते हो काम करके चुकता कर देंगे ...चलो फूटो वरना हाथ-पैर तोड़ दूंगा ‘’ गाल पर दूसरा थप्पड़ की झनझनाहट और उनकी गुर्राहट के भय से अखरू आतंकवाद के सामने आम जनों की तरह टूट सा गया था |शायद उसके लिए यह आतंकवाद का साक्षात दर्शन था
 

रविवार, 10 मई 2015

लघुव्यंग्य –वही होगा


लघुव्यंग्य –वही होगा

पति –पत्नी आपस में बात कर रहे थे | इसी बीच पत्नी बोली – ‘’ 
शर्मा जी स्वर्ग सिधार गए | अब बेचारी दीदी व उनके दो बच्चों का क्या हाल होगा |बच्चे अभी ब्याहे नहीं हैं ... कैसे चलेगा घर का गुजर –बसर |
‘’’’ कुछ नहीं ..पेंशन के साथ-साथ अनुकंपा नियुक्ति भी मिलेगी उन्हें.....वे अपना मन उनमें बहला लेंगी |’’ पति ने सपाट उत्तर दिया |
‘’लेकिन बेटी ब्याह जाने से और अकेली महसूस करेंगी ...मन कि बेटे का विवाह भी कर देंगी ..पर वे तो अपने में मस्त रहेंगे |फिर क्या होगा बेचारी का |’’पत्नी ने गंभीर होते हुए कहा |
‘’ नया कुछ नहीं होगा ... वही होगा जो हमारे घर तुम्हें बहू बनाकर लाने के बाद मेरी मां का हाल हो रहा है ....|
पति ने पत्नी की ओर से बढ़ायी जा प्रश्नों की श्रृंखला को तोड़ते हुए कहा |
             सुनील कुमार ‘’सजल ‘’

लघुव्यंग्य –करूं या नहीं



लघुव्यंग्य –करूं या नहीं
गाँवव आसपास सूखा पड़ने से मजदूरों का पलायन जारी था|खेती- बाड़ी व घर के काम निपटाने के लिये मजदूरों  का अभाव बना हुआ था | काफी प्रयास के बाद घर के पिछवाड़े का कचरा साफ़ करवाने के लिए उन्हें एक मजदूर उपलब्ध हो पाया |वह जैसे  –तैसे तैयार हुआ और अगली सुबह से काम पर आने की बात कहकर चला गया |
तीन दिन तक इंतज़ार करने के बाद जब वह चौथे दिन उनके घर में उपस्थित हुआ | वे उसे फटकार लगाते हुए बोले –‘’ आज आये हो .. बहुत इन्तजार करवाया ... बड़े भाव बढ़ गए हैं तुम लोगों के इन दिनों ....|’’
मजदूर ने भी उसी अंदाज में जवाब देते हुए कहा –‘’ साब , जब आप कर्मचारी लोग दफ्तर में एक दिन के काम को निपटाने में सप्ताह भर लगाते हैं ...तो मैं मजदूर ठहरा ..कम से कम तीन दिन बाद चला आया ... कही काम शुरू करूं या नहीं ....|’’
वे खामोश...काम हरु करने का इशारा करके रह गए |
             सुनील कुमार ‘’सजल ‘’

लघुकथा – कमाई


लघुकथा – कमाई
सोमवती अमावस्या का दिन | सेठ जी हाथ में थैली लिए बस स्टैंड की ओर जा रहे थे |
‘’ अरे सेठ जी कहांजा रहे हैं ...वह भी सुबह –सुबह |’’ मैं उन्हें देखते ही बोला | वे खड़े हो गये|
‘’नर्मदा करने अमरकंटक |’’
‘’ ऐसी कडकडातीसर्दी में क्यों प्राण दे रहें हैं |’’
क्या करें तो ...आज मार्केट भी सूना है ... धंधा – पानी सब ठंडा है ...सोचा आज पुण्य ही कमा आएं ...| फिर अन्य दिनों में धंधे की कमाई से फुर्सत कहां मिलती है ?’’
‘’ यानी सिर्फ कमाई की ही चिंता ... सेठ जी |’’ मैंने हंसते हुए कहा |
‘’ भई अपन ठहरे व्यापारी ... हर क्षेत्र में मुनाफ़ा ही देखते हैं ..फिर वह धर्म हो धंधा ...|’’
             सुनील कुमार ‘’सजल ‘’

शनिवार, 9 मई 2015

लघुकथा – अभी तक



लघुकथा – अभी तक

एक पुलिस कर्मी ने पटाखे की दुकानसे पटाखा पैक कराया और बिना भुगतान किये चल दिया | उसके जाने के बाद विक्रेता बुरीं गालियाँ देते हुए बोला- ‘’ इन हरामखोरों के कारण धंधा भी सहीं ढंग से नहीं कर सकते |’’

साथ ही में खड़े साथी ने उससे कहा- ‘’आपने बिल भुगतान करने को क्यों नहीं कहा ?’’

‘’साला लायसेंस माँगने लगता तो कहाँ से लाकर दिखाता .... जो मैंने अभी तक बनवाया नहीं है |’’