रविवार, 28 अगस्त 2016

लघुव्यंग्य – धंधा

लघुव्यंग्य – धंधा

चमन भाई को अपने धंधे में अचानक काफी नुकसान उठाना पडा |धंधे में लगी साड़ी पूंजी मटियामेट हो गयी |थोड़ा बहुत जो पास में था वह साहूकारों के कर्ज पटाने में चला गया |चमन को कुछ नहीं सूझ रहा था कि वे क्या करें ? घर की माली हालत पर तनाव भरे आंसू बहाते उन्हें जाने क्या सूझा कि वे अपनों से थोड़ा सा कर्ज लेकर अवैध शराब बनवा कर बेचना शुरू कर दिया | इस पर प्रतिक्रया करते हुए उनके एक करीबी मित्र ने उनसे कहा –‘’ यार भई आप तो एक इज्जतदार आदमी हैं अपनी इज्जत को दांव पर लगाते हुए यह क्या अवैध थर्रा बेच रहे है हैं | कम से कम धंधा तो ऐसा करते जिसमें इज्जत की भले ही एक ही रोटी मिलती | यह काम तो ...?’’
‘’भाई अगर यह इज्जतदार लोगों का धंधा नहीं है तो आप जैसे इज्जतदार लोग रोजाना शाम को कल्लू के घर हलक में गिलास दो गिलास वही ठर्रा उदालने क्यों जाते हैं ? कही ?””

   सुनील कुमार ‘’सजल’’


बुधवार, 6 जुलाई 2016

लघुकथा –फोन टेपिंग

लघुकथा –फोन टेपिंग

नेताजी कई दिनों से मायूस चल रहे थे | पार्टी व आम जनता के बीच उनकी कोई खास पूछ-परख नहीं हो रही थी |
एक दिन एक चमचे ने उनसे कहा-‘’ अगर यूं ही आप उपेक्षित होते रहे तो समझिये आपकी नेतागिरी का बल्ब एक दिन फ्यूज होकर रह जाएगा |’’
‘’ वाही तो मै भी सोच रहा हूँ प्यारे क्या करून ?’’
काफी गहन विचार कर चमचे ने उनसे कहा- ‘’ मेरी खोपड़ी में एक उपाय कुलबुला रहा है |’’
क्या?’’
‘’ मीडिया में खबर फैला दीजिये कि आपकी गोपनीय बातों का विपक्षी ‘’ फोन टेपिंग’’ कर रहे हैं ...फिर देखी सबका ध्यान आपकी ओर खिंच जाएगा और आप मरू में सींचे गए पौधे की तरह फिर से हरे भरे...|’’
‘’ वाह बेटा..| ‘’ नेताजी उसकी पीठ थपथपाते हुए बोले –‘’ आज यह फार्मूला राजनीति में खूब फल-फूल रहा है ...|””
अगले दिन से अखबारों में समाचारों की शुरुआत उनके “” फोन टेपिंग”” वाली खबरों से हो रही थी | 

सुनील कुमार ‘’सजल’’


शनिवार, 14 मई 2016

लघुव्यंग्य – अभीतक

लघुव्यंग्य – अभीतक

एक पुलिस कर्मी ने पटाखों की दुकान से पटाखा पैक कराया और बिना भुगतान किये चल दिया | उसके जाने के बाद विक्रेता बुरी गालियाँ देते हुए बोला- ‘’ इन हरामखोरों के कारण धंधा ढंग से नहीं कर सकते |’’
साथ खड़े साथी ने उससे कहा-‘’ आपने बिल भुगतान करने को क्यों नहीं कहा ?
‘’ साला लायसेंस माँगने लगता तो कहाँ से दिखाता ....जो अभी तक मैंने बनवाया नहीं है |’’


सुनील कुमार ‘’सजल’’

शुक्रवार, 13 मई 2016

लघुकथा – कला

लघुकथा – कला

‘’ इतनी सुन्दर पेंटिंग कहाँ से खरीदी जीजाजी ....बड़ी सुन्दर लग रही है ....जी चाहता है इसे मैं ले लूं |’’बैठक कक्ष की दीवार पर टंगे चित्र की ओर इशारा करते हुए साली ने कहा |
जीजा जी का झट से जवाब था- ‘’ न..भई न ..इसे मैं किसी को नहीं दे सकता .. इसे मेरी भांजी सुषमा ने ख़ास तौर से अपने मामा को दिया है |’’
‘’ क्या सुषमा ने बनाया है...हूँ.. हो ही नहीं सकता देखने से तो नहीं लगती है वह कहीं से ...कि चित्रकार हो सकती है |’’
‘’ क्यों ? किसी कलाकार के चहरे पर उसके कला प्रेम की मुहर लगी होती है ?’’ जीजा जी ने कड़े शब्दों में कहा |
‘’ और नहीं तो क्या ... न तो कभी उसकी कला पात्र-पत्रिका के पृष्ठों पर देखने को मिली और न ही उसके चित्रों की कोई प्रदर्शनी लगी |’’साली ने कहा |
‘’ ‘’ सुनो साली साहिबा... मेरी भांजी को कम मत आंकना ....|तुम्हें बता दूं इस दुनिया में दो तरह के बलात्कार होते है एक तो वे जिन्हें थोड़ी –सी कला क्या हासिल हुई प्रदर्शन की भीड़ लगा लेते हैं और दूसरे वे जो पारंगत होने के बावजूद सिर्फ सीखते रहते हैं...समझी न |’’
जीजा जी के कथन पर साली साहिबा को गुस्सा आ रहा था |


सुनील कुमार ‘’सजल’’

गुरुवार, 12 मई 2016

लघुकथा- इज्जत

लघुकथा- इज्जत

पिछले साल वर्मा परिवार की नौकरानी सुखिया की बेटी कल्लो ने पड़ोस के विजातीय युवक माधो से प्रेम विवाह कर लिया था | वर्मा जी ने उन्हें काफी ऊटपटांग तरीके से बुरी तरह से अपमानित करते हुए कहा था |’’ तुम गरीब लोगो को वाकई में इज्जत की ज़रा भी परवाह नहीं रहती | अरे तुम्हारी लड़की को कुछ तो सोचना चाहिए था न ....कम से कम तेरी इज्जत की ही खातिर  ....! क्या तुम्हारे समाज में लड़कों का अकाल पड़ गया है जो परजात को...|’’
गरीबी और उनके यहाँ काम करने के कारण भला क्या कहती सुखिया उन्हें | सो मन मसोसकर चुप रह गई |
 आज वर्मा परिवार की लाडली बिटिया सुमिता का वैवाहिक कार्यक्रम संपन्न हो रहा है | पिछले माह सुमिता ने राजधानी में रहते हुए अपने लिए खुद वर तलाश लिया था | लड़का विजातीय और पिछड़ी जाती का होते हुए भी यहाँ ‘’ निम्न जाति’’ शब्द आड़े नहीं आ रहा है | और न ही वर्मा परिवार की नाक कट रही है | बल्कि आए हुए मेहमानों के सामने उनके मुख से लडके का जमकर गुणगान किया जा रहा है | दरअसल वह अमेरिका की किसी कम्पनी में उच्च पद पर आसीन है |


सुनील कुमार ‘’सजल’ 

बुधवार, 11 मई 2016

लघुकथा- सूत्र

लघुकथा- सूत्र

आँगन में रखी कुर्सी में धंसे नेताजी ध्यानपूर्वक देख रहे थे कि दानों के लिए चिड़िया आपस में किस तरह लड़ रही थी | वे एक दूसरे पर चोंच व पंजों से हमला कर रही थी |
 पास खड़े चमचे ने उनकी ध्यान-तन्द्रा तोड़ते हुए कहा-‘’ दादा , इन चिड़ियों को आप बड़े गौर से देख रहे हैं ? कोई चुनावी सूत्र ढूंढ रहे है क्या ?’’
‘’ हाँ .... मिलगया ... हमें सूत्र मिल गया |’’नेताजी मुस्करा उठे |
‘’ काहे का सूत्र मिल गया दादा? हमें भी तो बताओ |’’ चमचे कि जिज्ञासा भरी नजरें उन पर टिक गई |
‘’ आवास तोला के लोग इन चिड़ियों की भाँती ही भूख से मर रहे है | पूरी बस्ती में मात्र 3 -4 बोरी चावल ही बांटने हेतु पहुँचाओ | अनाज देखकर अगर वे टूट पड़े तो उन्हें आपस में लूटपाट करने हेतु लड़ने-मरने दो | तब तुम लोग चुपचाप वहां से खिसक लेना | वैसे भी वो लोग अब हमें ‘’ भूतपूर्व ‘’ बनाने के मूड में हैं , इसलिए उन सालों को ऎसी ही सजा मिलने दो कि वो अगर अपने काम न आ सके तो विपक्षियों के भी किसी काम न आ सके | और हाँ , सुनो ! अपने इलाके में आवास तोला जैसे ही दो-चार गाँवों का और पता लगाओ ताकि वहां भी....!’’
नेताजी ने कठिन समीकरण का जो सूत्र निकाला था, वह करीब आती चुनाव तारीखों के लिए किसी पवित्र स्थल पर आंतकी बम विस्फोट से कम न था |
सुनील कुमार ‘’सजल’’

  सुनील कुमार सजल


रविवार, 8 मई 2016

लघुकथा- डायन

लघुकथा- डायन

विधवा अहरिन गाँव की पाचवीं औरत थी , जो डायन होने के शक में गाँव की भारी पंचायत में अपमानित होने के बाद नग्न घुमाए जाने का संत्रास भुगत रही थी |इसके पहले रौबदार सरपंच राम कृपाल ने अपने अन्दर चैत की धुप - सी दहकती वासना पर सहयोग की आषाढी फुहार करने का प्रस्ताव रखा था | परन्तु विधवा होते हुए भी अपनी मर्यादा पर गर्व करने वाली अहरिन ने उसे भद्दी गाली देकर उसकी नीयत को सबके सामने उजागर करने की धमकी देते हुए सरपंच के घिनौने प्रस्ताव पर जोरदार तमाचा जड़ दिया था | तभी से वह सरपंच की आँखों में फंसे  तिनके की भाँती खटक रही थी |
गाँव में राजनीतिक रौब और सरपंच जैसे रुतबेदार पद पर आसीन होने के साथ रामकृपाल की सोच में अब अहरिन को किसी भी तरह मात देने के अलावा कोई चारा नजर नहीं आ रहा था | उसे लगने लगा था कि अगर उसकी करतूत की पोल खुल गयी तो वह लोगो के सामने मुंह दिखाने के काबिल नहीं रह जाएगा |
  उस दिन मौसम अनमना था | सर्द हवाओं का जोर | सूरज भी चमकते हुए अपना मुंह चुरा लेता | ऐसे दौर में सरपंच का पुत्र बीमार पड़ गया था | इसी मौके का लाभ उठाकर सरपंच ने पूरे गाँव में अफवाह फैला दी ,’’ अहरिन डायन है , चुड़ैल है | अगर आप में से किसी को मेरी बात का विशवास न हो तो भूलैया ओझा से पूछ लो |
भूलैया गाँव का नामी ओझा था | उसने जो कह दिया , वह पत्थर की लकीर के सामान होता | लेकिन पैसों की चकाचौंध ने भोलैया को सरपंच की आवाज में बोलने को मजबूर कर दिया था | ऐसे में लोगों को उसकी बात का विशवास न हो, यह कैसे हो सकता था |
  अहरिन इस घोर अपमान भरी घटना के बाद अंत:स्थल पर प्रतिशोध व अपमान की आग में चूल्हे में दहकते अंगारों सी दाहक रही थी | बेचारी अन्दर ही अन्दर जल रही थी | कभी सोचती कि आत्महत्या कर ले तो कभी अन्दर का सोया साहस जाग उठाता | कभी वह बुदबुदाती रह जाती ,’’ अगर यूँ ही मौत को गले लगा लेगी तो इस गाँव में न जाने उस जैसी कितनी ही डायनें पैदा होती रहेंगीं | तू ऐसा कर डायन घोषित करने वाले नराधार्मों का ही अंत कर दाल...| नहीं ...नहीं ... फिर तो लोग मुझे हत्यारिन ठहराएंगे | लोग मेरे खिलाफ कोई षड्यंत्र रचेंगें ...| पर अब षड्यंत्र रचे भी तो क्या , अब मेरे पास छिपाने को रह ही क्या गया है , जो गाँव वाले....?’’
  विचारों के भंवर से जूझते उसे दिन, हफ्ता व महीना गुजर गए | अत: एक दिन उसके नारीत्व ने उसे ललकारा और उसके अन्दर सोया हुआ साहस जाग उठा |
   अगले ही दिन एक के बाद एक पांच लहुलुहान लाशें बिछ  गयी |छठी लाश के रूप में वह स्वयं थी , जो लाश होकर भी रणक्षेत्र में जीत की प्रसन्न मुद्रा में नजर आ रही थी , मानो माटी की मूरत में किसी ललकार ने मुस्कान को बड़ी खूबसूरती से गढ़ा हो |

  सुनील कुमार सजल